एक पौराणिक कथा के अनुसार –
ब्रह्म ऋषि मंडल में कही स्थान न मिलने के कारण उत्तेजित होकर
, भगवान विष्णु से मिलने पहुचे तो वे निंद्रामग्न थे तथा लक्ष्मी जी उनके पाँव दबा
रही थी | अपनी अवमानना से क्रोधित हो कर भृगु ने उनके वक्षस्थल पर पैर रख दिया |
भगवान विष्णु ने उठकर विनम्रतापूर्वक पूछा कि उनके वज्र के समान वक्ष से ऋषिवर के
कोमल चरणों में चोट तो नही आई ?
इस सहनशीलता और विनम्रता को देख कर भृगु शर्म से पानी पानी हो
गए और चमा मांगने लगे | विष्णु जी ने तो उनको शमा कर दिया , किन्तु भृगु के इस
कर्म से लक्ष्मी जी ने उनको शाप दिया कि वे ब्राह्मण के घर कभी नही जाएंगी अर्थात
आज से ज्ञानी या सरस्वती के उपासक लक्ष्मी जी कि कृपा से वंचित ही रहेंगे |
इस पर ऋषि भृगु ने उद्घोष किया कि में अपनी साधना और तप के बल
पर एक ऐसी विद्या का सूत्रपात करूँगा जिसके माध्यम से लक्ष्मी जी ज्ञान के पास
हमेशा आती रहेगी |
इस हेतु भृगु ने एक ज्योतिष संहिता कि रचना की जो भृगु संहिता
के नाम से विख्तात हुई |
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